धर्मनिरपेक्षता
(sEculrism)
धर्मनिरपेक्षता
, पंथनिरपेक्षता या सेक्युलरवाद एक आधुनिक राजनैतिक एवं संविधानी सिद्धान्त है । धर्मनिरपेक्षता के मूलत: दो प्रस्ताव है
1) राज्य के संचालन एवं नीति-निर्धारण में मजहब (रेलिजन) का हस्तक्षेप नही होनी चाहिये।
2) सभी धर्म के लोग कानून, संविधान एवं सरकारी नीति के आगे समान है।
धर्मनिरपेक्षता (सेक्यूलरिज़्म) शब्द का पहले-पहल प्रयोग बर्मिंघम के जॉर्ज जेकब हॉलीयाक ने सन् 1846 के दौरान, अनुभवों द्वारा मनुष्य जीवन को बेहतर बनाने के तौर तरीक़ों को दर्शाने के लिए किया था. उनके अनुसार, "आस्तिकता-नास्तिकता और धर्म ग्रंथों में उलझे बगैर मनुष्य मात्र के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक, बौद्धिक स्वभाव को उच्चतम संभावित बिंदु तक विकसित करने के लिए प्रतिपादित ज्ञान और सेवा ही धर्मनिरपेक्षता है"
लोकतंत्र
(democracy)
लोकतंत्र
की परिभाषा के अनुसार यह "जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है"। लेकिन अलग-अलग देशकाल और परिस्थितियों में अलग-अलग धारणाओं के प्रयोग से इसकी अवधारणा कुछ जटिल हो गयी है। प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के संदर्भ में कई प्रस्ताव रखे गये हैं, पर इनमें से कई कभी क्रियान्वित नहीं हुए।
पहले दोनों निजाम वो हैं जो अल्लाह रब्बुल इज्ज़त के बागिओं के इजाद करदा हैं।
मुस्लमान और खासकर भारत के मुस्लमान इसी निज़ाम (सेकुलरिज्म और जम्हूरियत) के कयाम के लिए ऐढ़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। और अल्लाह के बागियों का निज़ाम कायम करके अल्लाह की रज़ा हासिल करना चाहते हैं।
और अल्लाह ताला और उसके आखरी रसूल (सल्ल 0) का निज़ाम जिसका सौता कुरान और सुन्नत है वो है खिलाफत जो पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल 0) ने मदीने में कायम की।
१९२० तक तमाम दुनिया में दावत और जिहाद का परचम बुलंद करती रही। आखिर कार मुसलमानों की बे रहरावी और दुश्मनाने इस्लाम की चालबाजियों के चलते ख़त्म हो गयी।
ये एक ढाल थी जो इस्लाम ने मुसलमानों की हिफाज़त के लिए दी थी।
https://docs.google.com/file/d/0B1H1-CHjyWBdWmFlSjFIZEY2VVk/edit?usp=sharing&pli=1
No comments:
Post a Comment