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Thursday, December 5, 2013

"यह अन्दर की बात है अदालत हमारे साथ है"



बाबरी मस्जिद गिराने से पहले सरकारी और राजनैतिक स्तर पर मुसलमानों को इतना आतंकित कर दिया गया था कि उनको अपनी जान और माल की सुरक्षा के अलावा किसी बात की भी चिन्ता नहीं रह गई थी इसीलिए मस्जिद को आसानी से गिरा दिया गया था और मुसलमान भी ठगे से अपनी बरबादी और लाचारी पर ख़ामोशी से आँसू बहा रहे थे।

हिंदूवादी संगठनों के आतंक के चँगुल में फँसे हुए मुसलमानों को उनकी बे...बसी का आईना दिखाते हुए एक ही मंच पर इकट्ठे होने वाले देश भर के आतंकवादियों ने नारा लगाया था कि, "यह अन्दर की बात है प्रशासन हमारे साथ है" और प्रशासन ने इसके ख़िलाफ़ कोई कारवाई न करके इस बात को सिद्ध भी कर दिया था।

जिस तरह से अब लगातार न्यायपालिका के द्वारा मस्जिद के क़ातिलों को बचाया जा रहा है और बाबरी मस्जिद, अफ़ज़ल गुरु आदि केसों में ग़लत फ़ैसले दिए गए हैं उनसे देश पर छाए हुए उन्ही आतंकियों का अनकहा नारा बिना आवाज़ के मुसलमानों को बेचैन किये हुए है कि, "यह अन्दर की बात है अदालत हमारे साथ है"

2002 में गुजरात में मुसलमानों के क़त्ले आम से पहचान बनाने वाले नरेन्द्र मोदी के पक्षकार की भूमिका निभाने वाले दिल्ली के मेट्रोपोलेटिन मजिस्ट्रेट ने भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का गला घोंटते हुए देश की जानी मानी पत्रकार और समाजसेविका शीबा असलम फ़हमी के ख़िलाफ़ FIR दर्ज कराये जाने का हुकुम देकर "वही" अन्दर की बात ज़ाहिर करके साबित भी कर दी है।

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