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Tuesday, August 27, 2013

 
‘‘उन्होंने तो मक्कारी की इन्तहा कर दी लेकिन अल्लाह भी उनकी मक्कारी को देख रहा है अगरचे उनकी मक्कारी इस कदर शदीद है के इससे पहाड़ भी हिल जाते है"(सूरे इब्राहिम: आयत 46)
 
मुसलमानों !
 
अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाही वबराकातहु,
 
इस्तेमारियो (साम्राज्यدवादियों), उनके इजेंटो, और उनके धड़ो के बदतरीन लोग तुम्हारे खिलाफ इकट्ठे हुए है। शाम मे इस्लाम की हुक्मरानी को रोकने के लिए ये सब यकजा होकर मकर और साज़िश कर रहे है, ताकि इसी सेक्यूलर जम्हूरी निजा़म को बरक़रार रखा जाए और सिर्फ चेहरो की तब्दीली के ज़रिए लोगो को ये बावर करा दिया जाए के तब्दीली आ गई है! आज तुम देख रहे हो और सुन रहे हो के अमरिका, उसके इत्तेहादी और उसके एजेंटो ने दोनो अतराफ से तुम्हारे खिलाफ बदी की क़ुव्वतो को इकट्ठा कर लिया है: एक तरफ सरकश बशार के जराईम है जिनसे इन्सानो के साथ दरख्त और पत्थर तक मेहफूज़ नही, जबके दूसरी तरफ से इस्तम्बूल, काहिरा और पैरिस में एक के बाद एक इज्तेेमात हो रहे है जिसका मक़सद एक अबूरी (Temporary) हुकूमत तश्कील देना है जो सेक्यूलर अवामी जम्हूरी निजाम (secular democratic system) की तश्कील करेगी, जैसा के वोह खुद कह रहे है, ताके वोह अल्लाह की जगह हराम और हलाल का फैसला खुद कर सके:
 
‘‘किसी चीज को अपनी जबान से झूठ-मूठ कह दिया करो के ये हलाल है और ये हराम है के अल्लाह पर झूठ बोहतान बांध लो, समझ लो के अल्लाह पर बोहतानबाजी करने वाले कामयाबी से मेहरूम ही रहते है" (सूरे नहल: आयत 161)

उन्होंने अपने शरअंगेज मंसूबो को तेज़ कर दिया है, जिसमें क़त्ल ग़ारतगरी, क्लेस्टहर बामो की बारीश, जलाकर राख कर देने वाले मटीरियल के ड्रम, जहरीली गैस के साथ-साथ दहशतनाक तशद्दुत (हिंसा) भी शामिल है, ऐसा तशद्दुत के जिससे जंगल के दरिंदे भी कांप उठे............ इस सब कुछ के जरिए ये शयातीन इस बात की उम्मीद करते है के इन्कलाबी गिरोह इस्लाम को जिंदगी के मामलात से अलग करने को कबूल कर ले और इस क़ातिल टोलो के साथ मुजा़करात करे जिसके हाथ मुसलमानो के खून से रंगे हुए है और मुसलसल मुसलमानों को क़त्ल कर रहे है और यू मुकद्दस शाम में सेम्यूलर जम्हूरी निजा़म का ठांचा तब्दील होगा और अमरीकी असर रसूख बरक़रार रहेगा ......... लेकिन ये शयातीन ये भूल गये है के शाम इस्लाम का कि़ला है, इस्लाम का मसकन (घर या जाए पनाह) है। शाम के लोग इस बातिल को हरगिज़ क़बूल नही करेंगे चाहे कुछ अरसे के लिए वो इसके दबाव में ही जाए, इसलिए के ये खबासत (गन्दगी) इन्तेहाई रूसवाई के साथ जा़ईल होने वाली है इन्शा अल्लाह। इसके अलावा ये शयातीन ये समझ नही रखते के हक ने हर सूरत बातिल को शिकस्त फाश देनी है।
 
‘‘बल्कि हम हक़ को बातिल पर दे मारते है तो उसका सर तोड़ देता है और वो नेस्त नाबूद हो जाता है और तुम जो कुछ कहते हो तुम्हारे लिए तो बर्बादी है" (सूरे अम्बिया: आयत 18)

इस्लाम के मसकन शाम के मोहतरम लोगो और मुख्लीस इन्कलाबियों: जो मक्कारी और साज़िशे कर रहे है ये इन्तेहाई खबीस मन्सूबे है। इस मन्सूबे का सरगना अमरीका और उसके इत्तेहादी है और इस खबीस मन्सूबे को उनके एजेंट और पेरूकार नाफिस कर रहे है, अन्धरूने मुल्क क़त्ल गा़रत के बाज़ार को गर्म रखने का मकसद ये है के लोग कौमी इत्तेहाद और अस्करी कौंसिल को कबूल कर लें.............. यू येह इस मन्सूबे को नाफिस करने के दो जहरीले आले (instrument) है। एक तरफ से बशार की जानिब से क़त्ल गा़रत और तबाही के जराइम का ज़हर और दूसरी तरफ से कौमी इत्तेहाद का जहरीला जाल जिसको अमरीका की रहनुमाई में बुना जा रहा है, ताके अपने ही बनाए हुए मौजूदा सरकश के किरदार (बशार के खात्मे) पर इसको रद्दी की टोकरी में फेंक कर उन (कौमी इत्तेहाद कौंसिल) को इसके तख्त पर बिठाया जा सके . . . . कौमी इत्ते हाद इस क़दर इस इक़् तेदार पर बैठने की उम्मीद रख रहा है जबकि सरकश बशार इस बात को नजरअंदाज कर रहा है के इसका खेल खत्म हो चुका है, कौमी कौंसिल के जाल को इसकी जगह लेने के लिए तैयार किया जा चुका है। वहीं अमरीका जिसने इसको बनाया था अब इसकी बारी खत्म होने पर इसके साथ भी वही कुछ करेगा जो उसने इस जैसे दूसरे एजेंटो के साथ किया जब उनका किरदार खत्म हो गया। इसके अलावा अमरीका ये उम्मीद कर रहा है के इससे पहले के उम्मत आका और एजेंट दोनो की निजासत से मुल्क को पाक करे, वोह एक एजेंट की जगह दूसरा एजेंट लाकर शाम में अपने असर रसूख को तूल दे सकता है ................ अगर इस सरकश बशार के पास ज़रा भी अक्ल होती तो इस अवामी इन्कलाब के इब्तदाई महीनो में ही मौका को गनीमत जानकर अपनी जान बचाकर और चेहरा छुपाकर भाग जाता, ये इससे बहतर था के इसको पकड़ा जाए या एक इसे मुजरिम के तौर पर क़त्ल कर दिया जाए जिस पर अल्लाह, उसके रसूल (صلى الله عليه وسلم) और मोमिनो की लानत हो :
‘‘उस दिन मोमिनीन खुशिया मनाएगें अल्लाह की मदद पर, वोह जिसकी चाहता है मदद करता है, वोह जबरदस्त और मेहरबान है" (सूर: अलरोम - आयत 4-5)

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