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Tuesday, August 14, 2012

एक उम्मत एक मुल्क एक झंडा.

सउदी अरब (जो कभी अरब था) के शाह अब्दुल्लाह हों, तुर्की के तय्यब अर्दोगन या किसी और मुस्लिम मुल्क का हुक्मरान वो सभी बिलकुल इसी तरेह मजबूर हैं जिस तरेह आप और मेरी तरेह के आम मुसलमान. उसके पास चाहे जितनी ताक़तवर फोज हो अटम बोम्ब ही क्यों न हो ये सारी ताकत सिर्फ अपना इक्तिदार बचाने के लिए है. बर्मा, असम, गुजरात, हो या जहाँ जहाँ भी मुसलमान ज़ुल्म के शिकार हैं वहां के मुसलमानों के लिए वो सिर्फ दुआ कर सकते हैं या मुर्दों का कफ़न खरीदने के लिए चंद सिक्के दे सकते हैं... हाँ अगर उनकी गद्दी उनकी हुकूमत पर कोई आंच आई तो वो तोप से लेकर कीमियाई हथियार तक इस्तेमाल करने से पीछे नही हटेंगे ना बच्चा देखेंगे ना बीमार सबको अपनी ताक़त का एहसास करा देंगे ...तो मुसलमानों क्या ये हमारे लीडर हैं ? क्या ये मुसलमान भी हैं ?..ज़रा सोचिये और इसका हल निकलए ...क्या इसका हल एक ऐसी रियासत नही जेसी अल्लाह के रसूल (सल्लo) ने मदीने में क़ायम की थी ? वो ख़लीफा-तुल-मुस्लिमीन नही हो सकते जेसे अबू बकर, से लेकर अब (1924) तक होते थे और दुनिया के हर मुसलमान की ढाल थे ? अरब हो या अजम उनका मुल्क एक था 'मिल्लत ए इस्लामिया' एक आर्मी थी, एक झंडा था (ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदुर रसूल अल्लाह) (सल्लo).ज़ुल्म की इंतिहा हो रही है ...
अल्लाह के रसूल (सल्लo) की एक हदीस और पेशनगोई पूरी होने के कगार पर है
इन links पर ग़ोर करें अगर इस हदीस पर यक़ीन रखते हैं ..
http://www.khilafat.dk/
http://khilafathindi.blogspot.in/
http://www.khilafah.com/
http://al-madeena.blogspot.in/

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