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Wednesday, April 27, 2011

निज़ामे कुफ्र के कयाम में राये देना कुफ्र है हराम है

गवां दी हमनें जो असलाफ़ से मीरास पाई थी
सेरेय्या से ज़मीं पे आसमां ने हमको दे मारा

"उन के दरमियाँ उसके मुताबिक फैसला करो जिसे अल्लाह ताला ने नाजिल फ़रमाया है.और उनकी ख्वाहिशात की पैरवी न करो,उस हक को छोडकर जो तुम्हारे पास आया है" सूरःअल मायदा:४६ ) । अल्लामा हाफिज़ इब्ने कसीर रह ० ने इस आयत क एक टुकड़े " और उन क दरमियान उसके मुताबिक फैसला करो जिसे अल्लाह ताला ने नाजिल फ़रमाया है " की तफसीर बयां करते हुए फ़रमाया है की "ये आयत हुक्म देती है ऐ मुहम्मद सल ० तुम लोगों के दरमियान फैसले करो चाहे वो अरब हो या अजम ,तालीमयाफ्ता हो या गैर तालीमयाफ्ता उसके मुताबिक जो अल्लाह सुभानाव्ताला ने नाजिल फ़रमाया है","और उनकी ख्वाहिशात की पैरवी न करो " यहाँ ख्वाहिशात से मतलब वो अफकार हैं जिसे वो मनवाना चाहते थे। यही वो अफकार थे जिसकी वजेह से वो अल्लाह और उसकी वही से दूर हो गए, "और उनकी ख्वाहिशात की पैरवी न करो , कहीं ऐसा न हो की वो तुम्हे उस हक से फैर दें जो तुम्हारे पास आया है", ये आयत लोगों को हुक्म देती है.की अल्लाह ताला ने जो रास्ता दिखाया है उसपर सचाई के साथ जमे रहें ,और जाहिल लोगों की बेजा ख्वाहिशात की पैरवी न करें। लोगों हमें अल्लाह की तरफ से हुक्म दिया गया है की इस उम्मत के दरमियान हम अल्लाह ताला क नाजिल अह्कामत की मुताबिक फैसला करें यानि उन लोगों की
कमज़ोर अफकार और फ़िज़ूल की बातों पर कान न धरें जो कुफ्र केमुताबिक लोगों पर हुकूमत करना चाहते हैं ,इसके बावजूद भी ऐसे कुछ लोग हैं जो इस बात पर इसरार करते हैं और तुम्हें पुकारते हैं की तुम उन्हें इलेक्शन मैं चुनकर मुस्लिम और गैर मुस्लिम दुनिया मैं मोजूद काफिराना निजाम मैं इक्तिदार दो .हक़ीक़तन ये एक बहुत बड़ा हराम अमल है। काफिराना अफकार और सिस्टम को इक्तिदार देकर हम उस सिस्टम मैं साझेदारी,या शर्यत का अधुरा निफाज़ क काँटों भरे रस्ते पर चल रहे हैं.इंशा अल्लाह हम इस गुम्राह्कुन रस्ते को बेनकाब कर देंगे और इस बदसूरती को आपके सामने बेनकाब कर देंगे और इसकी बदसूरती को आप के सामने वज़ह कर देंगे ताकि तुम उस मुनकिर को हतमी तोर पर ठुकरा दो
चुनाव एक निजाम का या एक लीडर का
सबसे पहले जहन मैं ये बात साफ होनी चाहिए की एक लीडर को चुनने और एक निजाम को चुनने में फर्क है .जहाँ तक लीडर को चुनने की बात है इस्लाम इसको फ़र्ज़ करार देता है ये बात सब जानते हैं की खुल्फाये राशिदीन भी बिल्वास्ता चुने गए थे .अफ़सोस आज सन 1924 से खिलाफत का निजाम मोजूद नहीं है.जिससे मुस्लिम रहनुमाओं को चुना जाता था .आज जो कुछ बचा है उसपर कुफ्फार का खतरा मंडराता रहता है जो मुस्लिम दुनिया का इस्तेह्साल कर रहे हैं.आज जो भी चुनाव होता है वो किसी हुक्मरान या लीडर क लिए नहीं होता बल्कि वो पुरे निजाम का चुनाव होता है.आज मुस्लिम दुनिया मैं ये नज़र आम देखने मैं आता है की बहुत सी इस्लामी जमातें ,लादीनी जमातों क साथ कुफ्रिया कानून साज़ असेम्ब्लिओं मैं सीट हासिल करने क लिए तह्रीकें चलाती हैंबकोल उनके उनका मकसद इन असेम्ब्लिओं मैं कुछ सीटें हासिल करके वो धीरे धीरे इनमें इस्लामी कवानीन को मुतार्रिफ करके इन निजामों को इस्लामी बना देंगे .इन्तखाब मैं हिस्सा लेने का मतलब हैं इक्तिदार मे हिस्सेदारी , या इस्लाम का आधा अधुरा निफाज़ करना .शरियत का आधा अधुरा निफाज़ कतअन हराम है। इसके बरक्स खलीफा का इन्तखाब न किया जाना और गैर इस्लामी निजाम मैं लीडर बनना या लीडर का चुनना ये वो मामला है जो क़तीय तोर पर हराम है। जिसमें इख्त्लाफे राय की गुंजाईश नहीं.मुसलमानों को ये शरई हक हासिल है की वो अपने उपर एक खलीफा को कायम करे लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं की वो अपने लिए कानून का भी चुनाव करें.जेसा की कुराने करीम मेंबयां किया गया है,"मुस्लमान मर्द और ओरत को ये हक नहीं पहुँचता की जब अल्लाह और रसूल उनके लिए हुक्म सादिर फरमा दें तो उनका अपने मामले में कोई इख्त्यार बाकी रह जाये ,और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की इतअत से मुंह फेरेगा वो खुली गुमराही मैं जा पड़ा " (अल-अहज़ाब-३६.) हाफिज़ इब्ने कसीर फरमाते हैं की ये आयत अपने मानी के एतबार से आम है और हर किस्म क मामलात से ताल्लुक रखती है यानी अल्लाह और उसके रसूल ने कोई फैसला कर दिया तो किसी को ये हक हासिल नही की वो इसके खिलाफ जाये,किसी को दूसरी राये रखने की इजाजत नही.कुरान इसको इस तरेह वज़ह करता है " आप के रब की कसम ,कोई उस वक्त तक मोमिन नही हो सकता जब तक वो अपने इख्तिलाफात मैं आपको हकम न बना ले और आपके फैसले पर तंगी न महसूस करे और दिल से मान ले " (अन-निसा-६५).अल्लाह और उसके रसूल क खिलाफ जाने पर कड़े लफ़्ज़ों मैं चेताया गया है,"और वो जो पैगम्बर (स०) के हुक्म की मुखालफत करते हैं ,उनके लिए चेतावनी है की वो किसी फितने मैं मुब्तिला न हो जाएँ या उनपर कोई दर्दनाक अजाब नाजिल न हो जाये ".(अन-नूर-६३) ......
तो उन जमातों क बारे में क्या कहें जो उस मामले में मुसलमानों को राये देती हैं जिसका अल्लाह और उसके रसूल नें पहले ही फैसला कर दिया है।बल्कि उन्हें नसीहत लेनी चाहए की कहीं ऐसा न हो की उनपर कोई फितना नाजिल हो जाये।उन लोगों की तरह जो अपनी नफसानी ख्वाहिशों को अपनी फ़िक्र का मयार बना लेती हैं ।ये अपनी खोखली ख्वाहिशों की बुन्याद पर कानून साज़ असेम्ब्लिओं क मेम्बर बनते हैं और लोगो को कुरान क कुछ एह्कमात की तरफ बुलाते हैं और कुछ को छोड़ देते हैं ।ऐसे लोगो और इन जमातों क बारे में अल्लाह की खुली हुई चेतावनी है"तो उनके दरमियान फैसला करो उसके मुताबिक जो अल्लाह ने नाजिल किया है.और उनकी ख्वाहिशात की पेरवी न करो और इस बात से आगाह रहना की कहीं वो तुम्हे उसके एक हिस्से से भी फेर दे जिसे अल्लाह ने नाजिल फ़रमाया है.और अगर वो मुंह मोड़ते हैं,तो समझ लो की अल्लाह उन्हें उनके गुनाह की पदश में सज़ा देना चाहता है.बेशक बहुत से लोग फसिकों में से हैं."(अल-मायदा-४९)। "
"क्या वो जाहिलियत से फैसला चाहते हैं ?और अल्लाह से बेहतर फैसला करने वाला कोन हो सकता है.उन लोगों क लिए जो उसपर पुख्ता इमान रखते हैं"(अल-मायदा -५०) हाफिज़ इब्ने कसीर इस आयत की तफसीर बयां करते हुए कहते हैं,"अल्लाह उनको तनक़ीद का निशाना बना रहा है जो अल्लाह क हुक्म को नजर अंदाज़ करते हैं,बल्कि वो अपनी राये जिसे उन्होंने खुद गड़ा है ,की तरफ तवज्जोह करते हैं जिसकी अल्लाह क दीन में कोई जगह नहीं है। तातारी अपने उस कानून की इतात करते थे जो उन्हें विरासत में मिला था ,उनकी किताब में ऐसे कवानीन थे जो इस्लाम ,यहुदिअत और नस्रानियत से लिए गए थे .इसलिए जो भी ऐसा करता है दरअसल वो कुफ्र करता है.और उससे उस वक्त तक लड़ा जाना चाहए जबतक वो अल्लाह और उसके रसूल क फैसले की तरफ वापस न लोट आये ,ताकि कोई भी कानून चाहे वो छोटा हो या बड़ा उसे अल्लाह क कानून की तरफ लोताया जाये (इब्ने कसीर जिल्द३,सफा २०२).यहाँ ये बताना भी ज़रूरी है की लोग उस वक्त काफ़िर हो जाते हैं जब वो वाकई इस्लाम के अधूरे निफाज़ पर ही यकीन रखते हैं.(अत-तिब्री ,१०:३५५).इब्ने कसीर की राये ये समझाने क लिए काफी है की किस बात पर उल्माए इस्लाम मुत्तफ़िक़ हैं:इस्लाम क अधूरे निफाज़ क हराम होने पर। मुसलमानों उन लोगों के बहकावे में मत आओ जोतुम्हे ये समझाते है की अल्लाह के इन एह्कमात के निफाज़ की आज ज़रूरत है और इनकी कल.

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