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Thursday, March 31, 2011

इस्लामी दुनिया मैं निजाम ए मुस्तुफा की तय्यारी

कोई चट्टान हथोड़े की पहली चोट से नहीं टूटती ,हथोड़े का एक एक वार उसे कमजोर करता है और आखरी चोट उसे बिखेर देती है बदलाव लाने का ये कुदरती उसूल है,हर छोटा क़दम दुरिओ को कम करके मंजिल को पास लाता है अब जिस तरेह चट्टान को तोड़ने क लिए पहली चोट जरूरी है और खास अहमियत वाली है तो इसी तरेह मंजिल की तरफ उठने वाला पहला क़दम हमें मंजिल की तरफ ले जाता है ,मोजुदा सामाजिक और राजनेतिक बदलाव क लिए उठने वाले क़दम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे है इंडोनेशिया से लेकर उत्तरी अफ्रीका तक सारी मुस्लिम दुनिया में उठने वाले इस तूफ़ान का तो सबको इल्म है कई दशको से जडें जमाये तानाशाहों क जुल्म से तंग आई जनता की क्रांति है लेकिन क्या हम मीडिया की उस मुहीम पैर गोर न करे जो पहले दिन से ही अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे है जो पश्चिमी देशो और अमेरिका की मंशा क मुताबिक है इस इन्कलाब को हर खबर और अख़बार ने इतना जोरदर तरीके से पेश नहीं किया जितनी मेहनत से ये मीडिया इसको लोकतंत्र को शुरुआत और जनता द्वारा लोकतंत्र की मांग कहकर प्रचारित किया जा रहा है क्या कोई ये बतायेगा की इनसे किसने कहा की वह की जनता अपने जालिम शासको से छुटकारा पाने क लिए लोकतंत्र की मांग केर रहा है गोरतलब है इन मुल्को क जहाँ से उथल पुथल मची है खालिस अचामी इन्कलाब है कोई सियासी जमात या कोई एक लीडर इनकी रहनुमाई नहीं केर रहा है फिर इन लोगो से किसने कहाकि यहाँ क लोग अब लोकतान्त्रिक व्यवस्था चाहते है पहली बात तो ये की अमेरिया और यूरोप का ये लोकतंत्र प्रेम पिछले ४० ५० साल से कहाँ चला गया था ये लोग क्यों इन तानाशाहों को पसंद करते थे इसलिए की ये जालिम तानाषा अपनी जनता का खून निचोड़ केर अमेरिका और यूरोप की प्यास बुझा रहे है अकूत उर्जा क भंडार लिए जमीं का हैं हिस्सा जो इन लोकतंत्र क मदारियों ने अपनी हैं का मैदान बना लिया था आज ज़ालिम और अयाश तानाशाओ से ज्यादा उस पुरस्रार सियासी खेल से निजात चाहता है जो ये लोकतंत्र क खिलाडी खेल रहे है।


अब जबकि अवामने बगावत और तख्ता पलट शुरू किया तो कर्नल गद्दाफी, बिन अली और हुस्नी मुबारक सब अमेरिका को बुरे लगने लगे और इनका लोकतंत्र प्रेम अचानक जग उठा और कुछ जगहों पर अमेरिका और नाटो ने अमन कायम करने और लोकतंत्र की स्थापना करने क लिया लोगों की हत्याएं करनी शुरू भी कर दी हैं , लेकिन किया वाकई मुस्लिम मुल्कों की जनता लोकतंत्र की मांग कर रही है, उस वयवस्था की जिसने अपने ५० ६० साल क इतिहास मैं अमेरिका भारत और अपने इजादकर्ता यूरोप को मानव इतिहास क सबसे बुरे दोर मैं पहुंचा दिया है,आज़ादी क नाम पर एक एइसा समाज बना दिया जो उन्मुक्त ता और नेतिक पतन की अंतिम पड़ाव पर है , जरा हम जमीन क उन हिस्सों पर नज़र डालते हैं जहाँ पर ये लोकतंत्र की व्यवस्था है.भारत जहाँ इस इस सिस्टम पर गर्व किया जाता है,इस युग की वो कोन सी बुराई है जो यहाँ नहीं फल फुल रही,गरीबी बेरोज़गारी भुकमरी भ्रष्टाचार आतंकवाद साम्प्रदायिकता और वो सब जो हम और आप सोच सकें जुर्म की तमाम किसमे इस सिस्टम की देन यहाँ मोजूद हैं, चुनाव क नाम पर यहाँ किया किया होता है ये बताने की जरूरत नहीं संसद में सरकार बनाने और गिराने क लिए जनता क नुमय्न्दे कुत्ते बिल्लिओं की तरेह बिकते हैं .समाज पर निगाह डालें लूट बलात्कार अपहरणतो अब आम समस्या है,बल्कि सम्लेंगिकता को हमारे सिस्टम ने जाईज़ करार दे दिया है, ये हालत उन सभी मुल्कों क हैं जहाँ ये लोकतान्त्रिक वेय्व्स्था लागु है. क्या ऐसा सिस्टम जो इंसानियत क लिए नुकसानदेह साबित हो चूका है , अरबों का भला करेगा ?,या फिर मीडिया और महाझुट क सहारे ये लोग (अमेरिका और यु एन ओ ) फिर से अपने गुलाम हुक्मरान इन मुल्कों पर थोप देंगे और जिस सिस्टम को बेचारी अवाम ने अपना खून बहा कर ख़त्म किया था वो फिर पिछले दरवाजे से उनपर थोप दी जाएगी? जिस सिस्टम को अवाम ने अपनी जानें देकर ख़त्म किया है वो दुसरे तरीके से फिर उनके उपर थोप दया जायेगा ,अब बात फिर उन मुस्लिम देशों की करते हैं तानाशाही और राजशाही क बाद जेसे ही जनता रहत की साँस लेगी और अपना मुस्तकबिल अपने हाथ से संवारने की कोशिश करेगी उससे पहले ही अमेरिकी और यूरोपी डेमोक्रेटिक रायबाज़ काहिरा और त्रिपोली क हवाई अड्डों पर उतरना शुरू हो जायेंगे , क्योंकि जमीन क इस सबसे जरखेज इलाके को ये लोग यहाँ की अवाम क हवाले नही कर सकते ये जानते हैं की अगर यहाँ क अवाम ने अपनी मर्जी का सयासी निजाम लागु कर दीया तो उन्हें यहाँ से अपना सामान बंधना पड़ सकता है, पर अब सवाल ये उठता है की इस अरबअवाम क पास वो कोंसी राजनेतिक विचारधरा है जो इन्हें जम्हूरियत की अफीम से बचाएगी , वो कोनसा निजाम है जो इस इलाके को सुकून बख्शेगा क्या इनके पास डेमोक्रेसी क आलावा कोई और रास्ता नहीं , क्या इनका हल आसमान से गिरे तो खजूर मैं अटके वाला हो जायेगा ,या फिर अब इनके दिमाग को किसी ऐसे निजाम ने रोशन कर दिया है जिसने माजी मैं न सिर्फ अरबों बल्कि तमाम इन्सनिअत को नेकी अमनो सुकून और तरक्की की राह दिखाई थी, ये बात गोर करने वाली है की मिस्र क मुसलमानों ने बिना किसी मसलकी तफरीक क नमाज़ क वक़्त किबला रुख होकर एक ही इमाम क पीछे नमाज़ पढ़ी न सुन्नी न कोई शिया न कोई अरबी न कोई अजमी न कोई मसलक न कोई मकतब वहाँ मोजूद हर इन्सान सिर्फ मुस्लमान था, अपने रब क आगे सजदा ज़ेर और दुआ गोह ,बहरहाल उनकी मेहनतें रंग ला रहीं हैं उम्र मुख़्तार क बच्चे लड़ रहे हैं ,और तहरीर स्कुअयर की जमीन सोच रही है की मेरे सीने को सजदों से पाक करने वाले किया वो निजाम भी लायेंगे जिसका नमाज़ हुक्म दे रही है,

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