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Wednesday, August 26, 2009

इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली


RBI के भूतपूर्व निदेशक का कहना है कि "बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 में बदलाव किये बिना ही भारत में इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली लागू की जा सकती है. अल्पाधिकार प्राप्त लोगों के लिए एवम् अधिकारहीन और हाशिये के लोगों के लिए इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली वरदान साबित होगी."भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व निदेशक जनाब अब्दुल हसीब मुंबई में जमाते-इस्लामी हिंदी के तत्वाधान में आयोजित एक सेमीनार 'Global Financial Crisis and Islamic Economic System' / 'विश्वव्यापी वित्तीय संकट और इस्लामी आर्थिक प्रणाली' में संबोधित कर रहे थे. भारत में इस्लामी आर्थिक प्रणाली की वक़ालत में उनका कहना था कि "रघुराम राजन कमिटी ने आर्थिक सेक्टर में सुधार हेतु जो तथ्य दिए उसमें इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली ही सबसे उपयुक्त बताई है. भारत के आर्थिक क्षेत्र में सुधार हेतु इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली को लागू करना सबसे बेहतर और कारगर काम होगा." उन्होंने इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली और ब्याज रहित बैंकिंग प्रणाली में भी जानकारी और कहा कि दुनिया के बहुत से देश यह ब्याज रहित बैंकिंग प्रणाली अपना चुके हैं और वह कारगर भी है. नयी सदी में जबकि दुनिया में मंदी का दौर चल रहा है और सभी आर्थिक विपत्तियों से जूझ रहे हैं, इसके लिए ज़रूरि है कि इसका हल सोचा जाये."इस्लामिक बैंकिंग और आर्थिक प्रणाली की ख़ूबी यह है कि वह अप्रभावित है और उससे भी बड़ी विशेषता है कि वह 'केयरिंग और शेयरिंग', पारदर्शी एवम् इंसानी सिद्धांत और उसूलों के क़रीब है.", इस्लामिक बैंकिंग की राष्ट्रीय कमिटी के संयोजक जनाब अब्दुर-रकीब ने टिपण्णी करी, "जबकि जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दीगर मुल्क़ अरबों डॉलर के व्यापार के लिए आर्थिक उदारीकरण को अपनाकर स्वागत कर रहें हैं तो हम क्यूँ नहीं कर सकते", उन्होंने आगे तर्क दिया.उन्होंने यह भी सफाई दी कि जिन लोगों के मन में यह है कि यह आर्थिक प्रणाली केवल मुस्लिम के लिए है तो यह गलत है क्यूंकि यह प्रणाली पुरे विश्वस्तर पर कामयाब है और भारत के लिए भी इंशा-अल्लाह होगी. इस्लामिक बैंकिंग और आर्थिक प्रणाली पूरे इंसानियत के हित में है. "अपारदर्शिता और ब्याज ने आर्थिक विपत्तियों को और अधिक बढावा दिया है, जिसके चलते अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है.", डॉ. शरीक़ निसार (अर्थशास्त्री व इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली के ज्ञाता) ने विश्लेषित किया. उन्होंने इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली के अंगों व प्रोडक्ट्स को बताते हुए कहा कि इनमें मुख्यतया मुदाराभा (speculation), कर्द-ए-हसना (Interest Free Loan), इजारा (Leasing) आदि हैं. लोगों को वैकल्पिक आर्थिक प्रणाली का अध्ययन करना चाहिए ताकी वे जान सकें कि यह मौजूदा बैंकिंग प्रणाली से बेहतर है"

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