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Tuesday, December 20, 2011

जारी

कभी कभी मुझे दुनिया भर की मीडिया की खोफनाक कामयाबी पर हेरतहोने लगती है जब सारी जिंदगी मस्जिद की चटाइयों पर बैठकर कुरान पाक के तर्जुमे और तफसीर का इल्म हासिल करने वाला रसूल ऐ पाक (सल्ल) की हदीसों का बागोर मुताला करने वाला फिर मुद्दतों चटाइयों पर बैठकर शागिर्दों को कुरान और सुन्नत का दर्स देने वाला आलिम ऐ दीन अपनी शरई शक्ल ओ शबाहत के साथ टीवी के केमरों सामने इस बात का ऐलान करता है की मेरी पार्टी की सारी जद्दोजेहद जम्हूरियत की बका और उसकी सलामती के लिए है .मुझे उस वक्त मीडिया के जादू का यकीन सा होने लगता है की जब एक मगरीबी तर्ज़ ऐ तालीम से आरास्तालेकिन साथ ही दीनी उलूम से आशना और इस्लामी क़वानीन के निफाज़ का अलमबरदार एक मुस्लिम रहनुमा इस बात का दावा करता है की इस मुल्क में हम जिस इन्किलाब के दाई हैं वो जम्हूरियत के रास्ते पर चलकर आएगा . हम आईनऔर कानून की पासदारी और जम्हूरी मूल्यों के लिए काम कर रहे है । कितने सादे हैं ये इस्लामी इन्किलाब और अल्लाह के दीन की सरबुलंदी का दावा करने वाले .इन्हें किस कद्र यकीन है की वो जम्हूरियत जो दुनिया के मुहज्ज़ब तरीन मुल्कों में सरमाया दार और दोलत मंद माफियाओं की कठपुतली है जहाँ आज जम्हूरियत के डेढ़ सो साला ज़ख़्मी समाज के इस शोषण के खिलाफ सड़कों पर निकल आये हैं और उनका एक ही नारा है की ये सरमाया दाराना निजाम ९९ फीसद लोगों पर १ फीसद लोगों की बदतरीन तानाशाही है .ऐसे सिस्टम और ऐसे चुनावी निजाम में ये इन्किलाब के दीवाने और इस्लामी निजाम के अलंबरदार दो सो साल भी जद्दोजेहद करें तो नाकाम ही लोटेंगे इसलिए के जम्हूरियत के खमीर में इन्किलाब की मिटटी ही नहीं है। इन्किलाब तो आमरियत और जम्हूरियत दोनों की जिद है.इन्किलाब तो एक रेला जरी एक तूफान है जो लुटेरे निजामो को तोड़ फोड़ देता है । चाहे वो एक इंसान की ताना शाही हो या ५०० संसद सदस्यों की।

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